शिक्षा की दशा दिशा और दुर्दशा

Shiksha -- MANREGA
Shiksha -- MANREGA

शिक्षा की दशा दिशा और दुर्दशा

“हजारों साल से चिल्ला रहे हो –“सर्वे भवन्तु सुखिनः…” क्या हुआ…? …कुछ कर पाए ? …इस दिशा में कोई प्रयास कभी कर पाए ?…पहले गुलाम थे तो कुछ नहीं कर सकते थे पर आज़ादी के इन 68 वर्षों में ही क्या कर लिया ? …समान शिक्षा …समान चिकित्सा…समान न्याय का नारा आज भी मुँह बाए खड़ा है …और तुम हजारों साल से चिल्लाये जा रहे हो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ ।”—- राजीव चतुर्वेदी

” शिक्षक से आखिर चाहते क्या हैं ? … पढाये ? … पढ़ाने देते ही कब हैं ? … कर्मठ शिक्षक /शिक्षिकाएं काम के से बोझ पिस रहे हैं और हरामखोर शिक्षक ऐश कर रहे हैं और हर सुविधा के बदले अधिकारी कैश कर रहे हैं …हरामखोर शिक्षिकाएं या तो शिक्षा विभाग के दलाल कमीनों को कमीशन दे रही हैं यह अपनी सुविधाओं के विस्तार के लिए अधिकारियों के विस्तर के विस्तार का हिसा हैं …हरामियों के हरम गरम हैं . इन न पढ़ाने वाले , प्रायः स्कूल ही न जाने वाले अध्यापक /अध्यापिकाओं की लम्बी फेहरिस्त है जो बिना कुछ ख़ास काम किये तनख्वाह ले रही है और बदले में अध्यापकों की फ़ौज मौज के बदले कुछ दे रही है और शिक्षिकाओं की फ़ौज मौज के बदले “बहुत कुछ” दे रही है …इसके लिए अधिकारियों की शिक्षणेतर शारीरिक आर्थिक सेवाएं आवश्यकता के अनुसार करनी पड़ती हैं …माँग और आपूर्ति के इस खेल में शिक्षिकाओं की मांग का सिन्दूर उनका अवमूल्यन करता है . पर भेड़ियों के अलावा गिद्ध भी तो हैं शिकार शिक्षिका का माँस नोचने को …ऐसे वातावरण में विशुद्ध अध्यापन की आकांक्षा वाले अध्यापक /अध्यापिका क्या करें ?

… सरकारी योजनाओं में शिक्षणेतर कार्यों की लम्बी फेहरिश्त है … मसलन जन गणना, भवन गणना ,आर्थिक गणना ,स्वास्थ परिक्षण, हाउस होल्ड सर्वे (बाल गणना),वोटर लिस्ट पुनरीक्षण(BLO) ,पशु गणना ,आधार कार्ड कैंप, पिछड़ी जाति गणना , छात्र वृत्ति का खाता खुलवाने की ड्यूटी , पल्स पोलियो की ड्यूटी ,भवन निर्माण,निर्वाचन में ड्यूटी ये विद्यालय से इतर है और मिड डे मील ,गैस सिलेंडर मंगाने की जिम्मेदारी,ड्रेस वितरण (बिना बजट आये दूकान वालो से उधार मांग कर कपडे बितरणका आदेश),रंगाई पुताई ,फर्नीचर क्रय ,पुस्तक वितरण व् उक्त के अभिलेख सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी , समाजवादी पेंशन प्रधान की संस्तुति का सर्वे और इन कार्यो के लिए कोई यात्रा भत्ता भी नही है । यही नहीं अखिलेश सरकार ने बच्चों को दूध पिलाने की योजना भी बनानी शुरू कर दी है . …सरकारी शिक्षा के ऐसे परिदृश्य में अगर कुछ कर्मठ शिक्षक हैं तो कामचोर /हरामखोर अध्यापक /अध्यापिकाओं की एक निरंतर बड़ी होती फ़ौज भी है जो शिक्षणेतर सेवाएं दे कर काम चोरी करते हैं …हर जिले में कुछ खुरापाती सप्लायर और प्रबंधक किस्म के मास्टर हैं तो कुछ खाला टाईप की अध्यापिकाएं भी और यह गिरोह बेसिक शिक्षा अधिकारियों , खंड बेसिक शिक्षा अधिकारियों सहित अन्य अधिकारियों के दैहिक दैविक भौतिक ताप हरण के/की प्रबंधक हैं … इस वातावरण में शिक्षा की दशा दिशा और कर्तव्यनिष्ठ अध्यापकों /अध्यापिकाओं की दुर्दशा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है .”

“ग्रामीण भारत के स्कूलों की दशा और दिशा पर गौर करें । स्कूलों में “मिड डे मील” तो बच्चों को स्कूल में बुलाने का चुगा है । दरअसल शहर के साहबों को अपनी औलादों की सेवा के लिए नौकर ढालने हैं । …गाँव के स्कूल बच्चों को मनरेगा का मजदूर ढालने के कारखाने हो चुके हैं । …सामान शिक्षा का नारा आज भी मुंह बाए खड़ा है । दूर देहात गाँव के स्कूलों में पढ़ाई होती ही कब है ?…मां बाप बच्चों को पढने के लिए गंभीर नहीं हैं …मास्टर प्रायः अनुपस्थित रहते हैं या डग्गेमारी करते हैं । इन पर नियंत्रण कौन करे ? प्रधान से ले कर बेसिक शिक्षा अधिकारी तक सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ।अध्यापकों को कामचोरी की सुविधा के बदले सुविधा शुल्क देना है तो महिला अध्यापकों को आर्थिक ही नहीं दैहिक शुल्क भी चुकाने पड़ रहे हैं । आप किसी बेसिक शिक्षा अधिकारी यानी BSA को देखिये निश्चय ही घूसखोर होगा साक्षात सुअर जैसा व्यक्तित्व बन चुका है …कर्म कुकर्म का भेद नहीं है …खाद्य कुखाद्य का भेद नहीं है …अधिकारों के दुरूपयोग की गर्जना है पर चरित्र की वर्जना नहीं है …महिला अध्यापकों को अगर पढाना नहीं है …पढ़ाने के लिए स्कूल जाना नहीं है तो हरामखोरी के बदले इन छोटे बड़े मझोले अधिकारियों के “हरम” में शामिल होना होता है ।घूसखोर अध्यापिकाखोर अधिकारी और हरामखोर मास्टर के बीच एक दुरभिसंधि है…सुविधा के बदले दैहिक सहमति देती अध्यापिकाएं …कामचोरी के बदले घूस देते अध्यापक …स्कूल की जर्जर इमारत में बाजीफे के पैसों से दारू पीते ग्राम प्रधान और सामान चरित्र वाले अध्यापक कैसा राष्ट्र निर्माण करेंगे ? …इन ग्रामीण स्कूलों की इमारतें हैं जैसे शिक्षा विभाग के अधिकारियों के चरित्र की इबारतें …ग्रामीण स्कूलों की इमारत उतनी ही जर्जर और घटिया हैं कि जितना शिक्षा विभाग के प्रायः अधिकारियों का चरित्र . ( निश्चित रूप से शिक्षा विभाग में भी कुछ ईमानदार और कुछ आंशिक भ्रष्ट अधिकारी होंगे ,– वह अपवाद हैं . मैं उस अपवाद पर प्रतिवाद नहीं कर रहा )….आज ग्राणीण भारत के स्कूल मनरेगा के मजदूर ढालने के कारखाने हो चुके हैं ।”

“सावधान !! यह शिक्षा प्रणाली हमारे बच्चों का बचपना और युवाओं की तरुणाई छीन रही है और पूरी की पूरी पीढी को कुंठित बना रही है. जिनको हम मास्टर / शिक्षक कहते हैं उनके बारे में भ्रम यदि हो तो दूर कर लें. जो मेडीकल एंट्रेंस की परिक्षा में फेल हो जाता है वह जीव विज्ञान का मास्टर बनता है, जो इन्जीनियरिंग की एंट्रेंस परिक्षा में फेल हो जाता है वह फिजिक्स या गणित का मास्टर बनता है. हिन्दी का मास्टर हिन्दी का बड़ा कवि या साहित्यकार नहीं हुआ और अंगरेजी का मास्टर अंगरेजी का बड़ा लेखक नहीं हुआ. अमेरिका अर्थशास्त्र के 62 मास्टरों /प्रोफेसरों को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरष्कार मिला तो उसकी अर्थ व्यवस्था गर्त में चली गयी. पूरी दुनिया में राजनीति शास्त्र का कोई मास्टर सीनेट या संसद या विधान सभा का सदस्य होना तो दूर सभासद भी नहीं हो सका है.मतलब साफ़ है या तो वह जिस विषय को पढता-पढाता आ रहा है वह राजनीति नहीं है या वह राजनीति समझता ही नहीं है और अपने ही विषय में अयोग्य है. जो मास्टर विधि (Ll.B.) पढ़ाते हैं वह अछे वकील नहीं हैं. कुछ इस तरह के मास्टरों के दिए अंकों से हम किसी की योग्यता भला कैसे नाप सकते हैं ? …डॉक्टरेट यानी Ph.D. का सच अब लोगबाग जान चले हैं …इसका रास्ता शोधार्थी के लिए गाईड की चाकरी से अधिक कुछ भी नहीं …छोटी नियत के गाईड की टुच्ची लुच्ची आकांक्षाएं और आख़िरी दिन 25-30 हजार रुपये की दान दक्षिणा …जो बेचारी लडकीयाँ शोध करती हैं वह अपने गाइड के किन देहिक /दैविक /भौतिक ताप को हरने को मजबूर की जाती हैं यह सार्जनिक सच सत्यापन का मोहताज नहीं. “वो क्या बताएंगे राह हमको, जिन्हें खुद अपना पता नहीं है” . इस तरह के शिक्षक …इस तरह की शिक्षा प्रणाली हमारी पीढियां नष्ट कर रही है.”

लेखक : राजीव चतुर्वेदी के ब्‍लॉग से साभार

ये लेखक के निजी विचार हैं