रोजाना हो रहे हैं तबादले
बीकानेर। शिक्षा विभाग में कहने को तबादलों पर रोक लगी हुई है और तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले तो पिछले छह साल से बंद है, इसके बावजूद विभिन्न कारणों का हवाला देते हुए विभाग में तबादलों का दौर जारी है। अंतर इतना ही है कि ये तबादले विभाग के आला अधिकारियों के दस्तखत से होने के बावजूद उनकी इच्छाशक्ति से नहीं हो रहे, स्थानान्तरण के मूल अधिकार को राज्य सरकार ने अघोषित रूप से अपहृत कर रखा लगता है।
शिक्षा मंत्रालय को भी बड़ी अजीब स्थिति में रखा गया है, शिक्षा राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार वासुदेव देवनानी को दिया गया है, वहीं शिक्षा विभाग के मुख्य निर्णय लेने का अधिकार अब भी सीएमओ में अटकाकर रखा गया है। खुद शिक्षा राज्य मंत्री ने अपने निवास के बाहर तख्ती टांग रखी है कि स्थानान्तरण पर बैन है, इस कारण इस बाबत किसी प्रकार की अर्जी न पेश की जाए।
दूसरी ओर विभाग के शिक्षकों के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है कि शिक्षक सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय को स्थानान्तरण संबंधी अर्जी पेश कर सके। ऐसे में यह सवाल भी खड़ा होता है कि जब शिक्षा राज्य मंत्री अर्जी नहीं लेते और मुख्यमंत्री कार्यालय को अर्जी नहीं दी जा सकती, तो कौनसी विधि से राज्य सरकार को अनुमान होता है कि किन शिक्षकों को तबादले की जरूरत है और उस जरूरत को पूरा करने के लिए राजकीय आदेश निकालकर तबादले किए जा रहे हैं।
सीधे तौर पर यह बैक डोर एंट्री का मामला लगता है। शिक्षा विभागीय सूत्रों के अनुसार विभाग में तबादलों से संबंधित सभी निर्णय लेने के लिए एक व्यक्ति को अघोषित रूप से सभी अधिकार दिए गए हैं। उस व्यक्ति के जरिए संपर्क किया जाए तो तबादले के लिए राजकीय आदेश जारी करवाए जा सकते हैं। पिछले छह सालों में तृतीय श्रेणी शिक्षकों और वर्तमान में बैन के दौरान अन्य श्रेणियों के शिक्षकों के जितने भी तबादले हो रहे हैं, सभी उसी बैक डोर के जरिए ही हुए बताए जा रहे हैं।
इस बैक डोर को इतना मजबूत बनाया गया है कि सत्ता से जुड़े कई विधायक और सांसदों की भी नहीं चल पा रही है। शिक्षक संगठनों ने कुछ समय पूर्व सरकार के ही एक मंत्री (शिक्षा राज्य मंत्री नहीं) से मुलाकात कर उनसे तबादलों के लिए आग्रह किया तो मंत्री ने स्पष्ट कहा कि सरकार में शिक्षा विभाग को लेकर उनकी नहीं सुनी जाती है। आपको ऐसे मामलों के लिए सीधे मुख्यमंत्री से ही संपर्क करना चाहिए। जब मंत्री की यह स्थिति है तो अनुमान किया जा सकता है कि सामान्य एमएलए अथवा पार्टी वर्कर्स की कितनी चलती होगी, आम जनता की तो कहीं सुनवाई का स्थान ही नहीं रखा गया है।
ताबड़तोड़ तबादले
हाल में शिक्षा विभाग में बैन के बाद करीब 400 प्रिंसीपल, 150 हैडमास्टर और विभिन्न कारणों का हवाला देते हुए तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादलों की सूचियां जारी की गई हैं। ये सभी स्थानान्तरण राजकीय आदेशों से हुए हैं। अनुमान के अनुसार बाड़मेर, जैसलमेर, सिरोही, झालावाड़ आदि क्षेत्रों के पांच हजार से अधिक शिक्षक पिछले सात सालों से स्थानान्तरण पर बैन खुलने का इंतजार कर रहे हैं। इसके अलावा राज्य के अन्य कोनों के स्थानान्तरण के इच्छुक शिक्षकों को मिला लिया जाए तो यह आंकड़ा आठ से दस हजार तक पहुंच सकता है। इतनी बड़ी संख्या में शिक्षक सालों से सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन किसी भी स्तर पर कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
धूल खा रही स्थानान्तरण नीति
पिछली सरकारों के दौरान तबादलों ने शिक्षकों को इस प्रकार हैरान किया कि हर कोई तबादला नीति की मांग करने लगा। तत्कालीन विपक्ष और वर्तमान सत्ताधारी दल भी उस दौर में स्थानान्तरण नीति की कसमें खा रहा था, लेकिन सरकार आने के चार साल बाद भी स्थानान्तरण नीति को अछूत ही रखा गया है। गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता में बनी समिति माध्यमिक शिक्षा से जुड़े शिक्षकों के तबादलों पर नीतिगत फैसलों की आवश्यकता की रिपोर्ट राज्य सरकार को पेश भी कर चुकी है, लेकिन एक साल होने को आया, उस समिति की रिपोर्ट को भी ठण्डे बस्ते के सुपुर्द कर दिया गया है।
राहत की जरूरत
स्थानान्तरण का इंतजार कर रहे शिक्षकों को अब राहत दिए जाने की जरूरत है। राज्य सरकार को तबादलों पर बैन हटाकर शिक्षकों को इच्छित स्थानों पर लगाने की कवायद शुरू करनी चाहिए, ताकि हजारों शिक्षकों को अनुकूल स्थान मिल सके।
– रामकृष्ण अग्रवाल, प्रदेशाध्यक्ष, अरस्तू