शिक्षकों संघों के प्रति रोष

शिक्षक संघ Shikshak sangh mang pradarshan dharna

शिक्षकों में अपने ही शिक्षक संघों और संघों के नेताओं के प्रति रोष बढ़ता जा रहा है। एक ओर जहां शिक्षक संघ सरकार की नीतियों और आदेशों का पालन के लिए तत्‍पर नजर आते हैं, वहीं शिक्षकों की समस्‍याओं के प्रति शिक्षक नेताओं का लगभग वही रवैया नजर आता है, जो खुद सरकार का है। ऐसे में शिक्षकों की आवाज बुलंद करने के लिए बने शिक्षक संघ खुद ही शिक्षकों के रोष का शिकार होते नजर आ रहे हैं।

पिछले दिनों कोरोना को लेकर शिक्षकों की भूमिका के संबंध में शिक्षक संघों के रैवेये, शिक्षकों की सुविधाओं के प्रति सरकार की उदासीनता को लेकर सोशल मीडिया पर शिक्षकों ने अपने संघों के खिलाफ आक्रोश प्रकट किया है। राजस्‍थान शिक्षा न्‍यूज पोर्टल राजस्‍थान के शिक्षकों की आवाज को आमजन तक पहुंचाने के लिए ऐसे ही एक शिक्षक की पोस्‍ट को ज्‍यों का त्‍यों आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है।


शिक्षक संघों के उद्देश्य V/S हकीकत

पोस्ट लंबी हो सकती है लेकिन शिक्षक साथियों पढ़ना जरूर

मुझे नहीं पता ये बातें किसने लिखी है लेकिन इनमें मुझे बहुत कुछ सच्चाई दिखाई दे रही है इसलिए खुद को शेयर करने से रोक नहीं सका।

मैं पेशे से एक राजकीय कर्मचारी हूं उसमें भी मैं राष्ट्र निर्माता शिक्षक समुदाय से संबंध रखने के कारण खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं।

साथियों पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि हमारे समाज और सरकार दोनों ही जगह पर हर बार शिक्षकों को वो सम्मान नहीं मिल रहा जिसके वो हकदार हैं और मिलेगा भी कैसे ? जब हमारे अपने ही इस सम्मान का बंटाधार कर रहे हैं। और इसके लिए सबसे पहला जिम्मेवार है राजस्थान के विभिन्न शिक्षक संघ जो वर्तमान में अपने पथ और दायित्वों को भूल गए हैं।
इनका मुख्य उद्देश्य सरकार से शिक्षकों को उनका जायज हक दिलाना था लेकिन ये तो आजकल सरकार को सुझाव देकर सरकार चलाने का असंभव प्रयास कर रहे हैं

मैं खुद एक शिक्षक हूं लेकिन मुझे ये नहीं पता कि यहां शिक्षक संघों के नाम पर कितनी दूकाने चल रही है। और हां हमेशा एक दूसरे के खिलाफ बोलने से नहीं चूकेंगे । शायद शिक्षकों के अलावा मुझे नहीं लगता कि किसी राजकीय वर्ग के एक से ज्यादा संघ होंगे, और सरकार बात ही उनकी सुनती है जिनमें एकता होती है।

यहां तो राजस्थानी कहावत “बंधी भारी लाख की, खुली राख की” चरितार्थ हो रही है।

किसी भी वर्ग का संघ हो उसका काम होता है उस वर्ग की जरूरतों और समस्याओं का समाधान करना लेकिन हमारे शिक्षक संघों के पदाधिकारियों को तो ये भी नहीं पता कि वर्तमान में शिक्षक साथियों की समस्या क्या-क्या है ?? पता भी कैसे होगा साहब कुछ सरकार की चापलूसी में व्यस्त हैं तो कुछ चापलूसों से घिरे हुए हैं।

राजस्थान के शिक्षक संघों ने वर्तमान कोरोना महामारी से निपटने हेतु एक दिन के वेतन कटौती के लिए स्वेच्छा से सरकार को लिखा । इससे हमें बड़ी खुशी हुई लेकिन इस मंडली ने कभी ये भी लिखा क्या कि फिल्ड में शिक्षक बिना सुरक्षा उपकरणों के कोरोना वायरस से जंग लड़ रहे हैं ।

लिखेंगे भी क्यों ?? पदाधिकारी महोदय जी की कौनसी ड्युटी लगी है जो सुरक्षा उपकरण चाहिए ।

अभी एक NGO ने ऐसी भाषा में शिक्षकों को अपमानित करते हुए यहां तक लिख दिया कि कभी काम नहीं करते, दो-चार दिन में हस्ताक्षर करते हैं इनका वेतन काट लिया जाये लेकिन किसी शिक्षक संघ ने ये नहीं कहा कि आपने क्यों हमारे लिए ऐसा बोला ?

बोलेंगे भी क्यों ? क्योंकि पदाधिकारी महोदय तो अपने पद का लाभ उठाते हुए घर के नजदीक पदस्थापित हैं तो इन्हें तो कभी मुख्यालय से दूर जाने जैसी समस्या ही नहीं आती।

सबसे बड़े राजकीय विभाग में तबादले की कोई स्पष्ट रीति नीति नहीं है और बनेगी भी नहीं क्योंकि अधिकांश पदाधिकारी महोदय चापलूसी करके शहरों और निज निवास के नजदीक पदस्थापित हैं तो इन्हें तबादला नीति की जरूरत है ही नहीं।

मेरे प्यारे शिक्षक साथियों में आपको कहना चाहता हूं कि ऐसे संघों का बहिष्कार कीजिए, इनसे अपने दिये गये चंदे का हिसाब मांगिए, जब चंदे की रसीदें काटने आयें तो इनसे ये पूछिए कि पिछले साल आपने कितनी समस्याओं का समाधान करवाया या फिर पूरा साल नेताओं को माला पहनाने और चाटूकारिता में ही निकाल दिया।

– एक मासूम शिक्षक