बीकानेर। केन्द्र सरकार ने भले ही देश में शिक्षा व्यवस्था हर वंचित तक पहुंचाने के लिए कानून बना दिया हो, लेकिन वास्तव में प्रावइेट स्कूलों ने भारत सरकार के कानून को ही ठेंगे पर रख रखा है। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी विद्यालयों को 25 प्रतिशत गरीब विद्यार्थियों को नि:शुल्क शिक्षा देने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन प्राइवेट स्कूल इसे मानने को तैयार नहीं नजर आते हैं।
देश में शिक्षा का अधिकार कानून (Right to education) कानून को लागू हुए आठ साल हो चुके हैं, लेकिन वर्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार अब तक 41 हजार 343 मामले ऐसे हैं, जहां इस कानून की खुलकर अवहेलना हुई है। ये तो केवल वे दर्ज मामले हैं जो अदालत तक पहुंचे हैं। इसके इतर प्राइवेट स्कूल तरह तरह के हथकंडे अपनाकर गरीब बच्चों को अपने पॉश स्कूलों से दूर रखने का प्रयास करते नजर आते हैं।
वर्ड बैंक के अनुसार 40 हजार से अधिक मामले दर्ज हुए हैं, इनमें से 2477 मामले तक उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गए, जहां इनकी सुनवाई हुई।
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत सरकार का प्रयास है कि छह से चौदह साल तक की उम्र हर एक बालक और बालिका को शिक्षा मिले। सरकारी स्कूल में इनके प्रवेश के लिए हर साल वृहद् स्तर पर प्रवेशोत्सव मनाया जा रहा है और प्रावइेट स्कूलों को भी स्कूल में भर्ती होने वाले विद्यार्थियों में से 25 प्रतिशत को भर्ती करना होता है। इन विद्यार्थियों को स्कूल की किसी प्रकार की फीस नहीं देनी होती, इसकी एवज में सरकार ही विद्यार्थियों का खर्च वहन करती है। इसके बावजूद निजी विद्यालय गरीब बच्चों को अपनी स्कूलों में प्रवेश देने से आनाकानी करने से बाज नहीं आते।
हालांकि विभागीय स्तर पर भी प्राइवेट स्कूलों पर लगाम लगाने के बहुतेरे प्रयास किए जाते हैं, इसके बावजूद बहुत से अभिभावकों को अंतत: अदालत का सहारा लेना पड़ रहा है। विश्वबैंक के नीतिगत शोधपत्र में पोर्टल ‘इंडियनकानून डॉट ओआरजी’ के आंकड़ों के हवाले से यह रिपोर्ट जारी की गई है।