बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ के नारे से माता-पिता प्रभावित तो हो रहे हैं
बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ के नारे से माता-पिता प्रभावित तो हो रहे हैं। इसके बावजूद अलवर जिले में अभिभावकों को बेटियों के लिए सरकारी स्कूल और बेटों के लिए प्राइवेट स्कूल पहली पसंद बन गया है। बीते एक दशक में प्राइवेट स्कूलों के गांव स्तर पर जाल फैलने का प्रभाव अभिभावकों की मानसिकता पर देखा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्र के सरकारी विद्यालयों में हर साल बेटियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अलवर जिले में बीते शिक्षण-सत्र 2017-18 में कक्षा 1 से 8वीं तक के विद्यार्थियों की संख्या पर नजर डालेंगे तो यह साफ समझ में आ जाएगा। इस वर्ष सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले लडक़ों की संख्या 75 हजार ५४९ और लड़कियों की संख्या ८९ हजार ७७१ है।
इधर प्राइवेट स्कूलों की संख्या देखिए तो इनमें पढऩे वाले लडक़ों की संख्या ८३ हजार २९ थी तो लड़कियों की संख्या ५७ हजार ५९९ थी। इस साल पढऩे वाले लडक़ों में कुल १ लाख ५७ हजार ५७८ तथा लड़कियों की संख्या १ लाख ४७ हजार ३७० थी। पांच साल में सरकारी स्कूलों में बढ़ रही बेटियां-बीते पांच वर्षों में लड़कियों का सरकारी स्कूलों में नामांकन बढऩे का प्रतिशत निरन्तर बढ़ता जा रहा है। २०१६-१७ की बात करें तो इसमें सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले लडक़ों की संख्या ७६ हजार २५३ तथा लड़कियों की संख्या ९२ हजार ३९१ थी। प्राइवेट स्कूल में ८७ हजार ९५० लडक़े थे जबकि लड़कियों की संख्या मात्र ५९ हजार ९३२ थी। २०१५-१६ के आंकड़ों पर नजर डाले तो पता लगेगा कि इस साल सरकारी स्कूल में लडक़े तो मात्र ८३ हजार ८९१ पढ़ते थे और लड़कियों की संख्या १ लाख १४ हजार ७२ थी।
प्राइवेट स्कूलों में तो लडक़े ही अधिक थे जिसमें बेटों की संख्या ९१ हजार ८०८ थी तो बेटियों की संख्या ६२ हजार १९२ थी।इन सालों में भी हालात खराब-वर्ष २०१४-१५ में सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले बेटों की संख्या ७८ हजार ९३० थी जबकि बेटियों की संख्या ८६ हजार ५४५ थी। इस साल ही प्राइवेट स्कूलों में बेटों की संख्या ८२ हजार ८१३ थी जबकि बेटियों की संख्या ७९०४२ थी। वर्ष २०१३-१४ में देखे तो यहां सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले विद्यार्थी छात्र १ लाख १० हजार ४६० थे जबकि छात्राओं की संख्या १ लाख २९ हजार ९७४ थी। इस साल प्राइवेट स्कूलों में तो ९१ हजार ८६२ लडक़े पढ़ रहे थे जबकि लड़कियों की संख्या ६४ हजार ६६४ थी।
यह कहते हैं विशेषज्ञ
प्रिंसीपल मेहताब सिंह चौधरी का कहना है कि यह सच्च है कि बेटियों को लोग अब पढ़ाने लगे हैं कि लेकिन यह भी सच्चाई है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेटियों की अपेक्षा में बेटों को अधिक शैक्षिक सुविधाएं दी जाती हैं। अलवर जिले में छात्राओं को सरकारी स्कूलों में अधिक पढ़ाना इसका प्रमाण है। इसी प्रकार व्याख्याता डॉ. रचना असोपा कहती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में पढ़ाई के प्रति जागरुकता आई है। जिले में बेटियो को पढ़ाया तो जाता है लेकिन उन पर अधिक पैसा खर्च करने में संकोच किया जाता है। बेटियां अभावों में पढक़र भी आगे निकल रही हैं।