संस्कृत भाषा से जुड़े लोगों की राज्य सरकार से सेवा नियमों को पूर्ववत रखने की मांग

Sanskrit Shiksha rajsanskrit.nic.in

जयपुर। राजस्थान संस्कृत शिक्षा विभाग अधीनस्थ सेवा नियम 2015 में किए गए संशोधन करने के विरोध में कई संस्कृत (Sanskrit) भाषा के विद्वान उतर आए है। संस्कृत मनीषियों ने आचार्य एवं शास्त्री करने वाले छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार से संस्कृत शिक्षा सेवा नियमों पूर्ववत रखे जाने की मांग की। राजस्थान संस्कृत साहित्य सम्मेलन के महामंत्री डॉ.राजकुमार जोशी, संस्कृत मनीषी कलानाथ शास्त्री आदि ने बताया कि संस्कृत शिक्षा विभाग में सेवा नियम 2015 में किए गए संशोधन से शास्त्री एवं आचार्य करने वाले विद्यार्थियों का अहित हुआ। पूर्व में जो सेवा नियम थे वे आचार्य व शास्त्री करने वाले छात्रों के हितकारी थे। सेवा नियम संशोधन से संस्कृत विद्यालयों का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। साथ ही प्रवेशिका, वरिष्ठ उपाध्याय, शास्त्री आचार्य किए हुए परंपरागत डिग्रियों का कोई महत्व नहीं रहेगा। ऐसे में सेवानियमों में संशोधन होने से विद्यार्थियों का जुड़ाव भी कम होने से संस्कृत भाषा को नुकसान होगा और छात्र संख्या में काफी कमी आएगी। उन्होंने बताया कि लोगों में भ्रांति फैलाने के लिए संस्कृत अध्यापकों के हितों से जोड़ा जा रहा है जबकि यह आचार्य व शास्त्री करने वाले छात्रों के हितों का मुद्दा है। शिक्षकों के पलायन जैसी कोई बात नहीं है। जोशी ने कहा कि संस्कृत भाषा का विकास करने के लिए पदमश्री नारायणदासजी महाराज ने अलग से संस्कृत विश्वविद्यालय की करवाई है। कोई भी व्यक्ति जिसने किसी भी विषय से स्नातक किया हो यदि वह संस्कृत में एमए कर लेता है तो विषय विशेषज्ञ के रूप में प्राध्यापक के योग्य हो जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह संस्कृत के पारंपरिक ज्ञान से खिलवाड़ और संस्कृत के मूल स्वरूप को बहुत बड़ा नुकसान होगा। संस्कृत भाषा के विद्वानों ने संस्कृत और संस्कृति की रक्षा के लिए सेवा नियमों को पूर्ववत रखने की सरकार से मांग की है।