पसंद-नापसंद जानने परिवार से करेंगे बातचीत
डूंगरपुर। सरकारी स्कूलों में कक्षा पहली और दूसरी के बच्चे ज्यादा समय तक न तो स्कूल में टिकते हैं और न ही उनकी उपस्थिति नियमित होती है। ऐसे में इसका फायदा निजी स्कूल प्रबंधन उठाते है ओर आखिर बच्चे सरकारी की बजाय निजी में प्रवेश ले लेते हंै या अभिभावक दिला देते हैं। इस झिझक को तोड़ने के लिए शिक्षा विभाग ने प्रयास शुरू कर दिए हंै। सबसे पहले तो इन छोटे बच्चों की पसंद और नापसंद को जानने का प्रयास किया जाएगा। बच्चों के परिजनों से बातचीत कर बच्चे के बारे में पता किया जाएगा और उसके अनुसार ही उस कक्षा की योजना तैयार की जाएगी। खास बात तो यह है कि बच्चों को स्कूल में नियमित उपस्थिति के लिए उनके और ग्रामीण खेलों का आयोजन भी स्कूल के आखिरी कालांश में किए जाएंगे। ताकि बच्चों का रुझान स्कूल के प्रति बढ़े। डीईओ मणिलाल छगण ने बताया कि छोटे बच्चों को स्कूल में पूरे समय तक कैसे रोका जाए और बच्चा क्या चाहता है, उस दिशा में उसकी पसंद और नापसंद का भी ध्यान रखा जाएगा। प्रारंभिक कक्षाओं में बच्चों के रुझान को बनाए रखने और नियमित स्कूल में उपस्थिति को लेकर शिक्षा विभाग करेगा नई गतिविधि।
कक्षा में हिंदी ही नहीं, वागड़ी भाषा में बात रख सकेंगे बच्चे
पहली और दूसरी कक्षा के बच्चे जल्द से हिंदी नहीं बोल पाते है या सीख पाते हंै। एक वातावरण का निर्माण किया जाएगा, लेकिन इसके पहले हिंदी को लेकर बच्चों को वागड़ी में भी बताया जाएगा कि हिंदी क्या है। वहीं वागड़ी भाषा में भी ये बच्चे अपनी बात रख सकेंगे। इसका असर यह होगा कि बच्चा क्या चाहता है, इसकी सहज रूप से जानकारी शिक्षक को पता चल सकेगी।
सकारात्मक असर
• इस नई गतिविधि से जहां स्कूल से बच्चे जुड़ेंगे, वहीं अभिभावकों का भी रुझान स्कूल की ओर बढ़ेगा।
• कक्षा में मनोरंजक बातों और कहानी, खेल आदि के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने से बच्चे नियमित आएंगे।
• बच्चों का रुझान कक्षा और स्कूल में बढ़ेगा।