कार्मिक सेवानिवृत्त होने के बाद भुगतान के लिए निदेशालय के चक्कर काट रहे है।
बीकानेर। सेवाकाल के दौरान लगे आरोपों की जांच सेवानिवृत्त होने तक पूरी नहीं होना खुद कार्मिक के लिए परेशानी का सबब बन जाता है। जांचें लम्बित होने से कार्मिक को पीएल, ग्रेच्युटी आदि का भुगतान नहीं मिलता। शिक्षा विभाग में विभागीय जांच के एेसे दर्जनों मामले लम्बित पड़े हैं। जिससे आरोपित कार्मिक सेवानिवृत्त होने के बाद भुगतान के लिए निदेशालय के चक्कर काट रहे है। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय में विभागीय कार्मिकों के खिलाफ 16 सीसीए, 17 एवं 18 सीसीए में विभागीय जांचें लम्बित है। कायदे से सेवानिवृत्ति के छह माह पहले पेंशन प्रकरण तैयार करने का प्रावधान है। सेवानिवृत्त होने से पहले यदि किसी कार्मिक के खिलाफ जांच है तो दोषी होने पर दण्ड दिया जाता है। यदि आर्थिक दंड है तो उसकी वसूली करनी होती है।
कार्मिक निर्दोष होने पर प्रकरण समाप्त सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले भुगतान दे दिए जाते है। निदेशालय में विभागीय जांच के मामलों में इसकी पालना नहीं हो रही है। सेवानिवृत्त होने के बाद भी आरोपित कार्मिक निदेशालय के चक्कर लगा रहे हैं। विभागीय जांच के मामले निदेशक के स्तर पर उप निदेशक को और उप निदेशक जिला शिक्षा अधिकारी को जांच के लिए भेजते हैं। जिला शिक्षा अधिकारी किसी प्राचार्य को जांच सौंप देते हैं। ये जांच रिपोर्ट मांगने, स्मरण पत्र देने की प्रक्रिया अटकी रहती है।
रिकवरी के बाद भी फैसला नहीं
माध्यमिक शिक्षा के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक जय प्रकाश के अनुसार वे राजकीय माध्यमिक विद्यालय 20 बी करणपुर में प्रधानाध्यपक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। साल 2011 में श्रीगंगानगर जिले के 9 बीईओ पर आरटीई की किश्त का ज्यादा भुगतान करने के आरोप लगे। इसमें वह भी शामिल थे। उन्होंने ज्यादा भुगतान की राशि 29 हजार 854 रुपए की दो माह में रिकवरी कर ली। जयप्रकाश के अनुसार 4 जुलाई 2017 में निदेशक ने व्यक्तिगत सुनवाई भी कर ली। अब सेवानिवृत्त हुए 9 महीने बीत जाने के बाद भी प्रकरण में फैसला नहीं किया गया है। इससे 35 लाख का भुगतान अटका है।
तय प्रक्रिया में ही कराते हैं जांच
विभागीय जांच के प्रकरण कई तरह के होते हैं। वित्तीय अनियमितता तथा अन्य आरोपों पर दिए 16 सीसीए, 17 सीसीए अथवा 18 सीसीए के आरोप पत्र की तय प्रक्रिया में जांच करवाई जाती है। मैंने हाल ही में कार्यभार ग्रहण किया है। एेसे में लम्बित मामलों के बारे में कुछ नहीं कह सकते।
-जोरावर सिंह, अनुभाग अधिकारी विभागीय जांच मा.शि. निदेशालय बीकानेर