उदयपुर। ये देश के ऐसे शिक्षित परिवार हैं, किसी ने हार्वर्ड से पढ़ाई कर यूनेस्को-यूनिसेफ और विश्व बैंक तक में सेवाएं दीं तो कोई अपने शहर का मशहूर डॉक्टर-इंजीनियर है लेकिन इनके बच्चों ने कभी क्लासरूम-ब्लैकबोर्ड नहीं देखे। कुछ परिवारों ने बच्चों की प्राथमिक स्तर तक की पढ़ाई के बाद स्कूल छुड़वा दिया। बच्चों पर इन्होंने परीक्षा व पढ़ने-लिखने को लेकर कभी दबाव नहीं बनाया और बच्चों की रुचि को पहचानते हुए उसी क्षेत्र में बढ़ने के लिए प्रेरित किया। खास बात यह है कि आज ये 10 साल से 16-17 साल के बच्चे-बच्चियां कोई डॉक्यूमेंट्री बनाने में माहिर है तो कोई आर्ट कला फेम और कोई टेबल-कुर्सी का शानदार डिजायनर।
फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं बच्चे…
ये स्कूली बच्चों से भी किसी मामले में कम नहीं हैं। फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। गणित के सूत्र भी मुंहजुबानी याद है इन्हें। पिछले दिनों उदयपुर के नयाखेड़ा स्थित तपोवन आश्रम में हुए ‘विमुक्त शिक्षा’ पर सम्मेलन में दिल्ली, मुम्बई, पुणे, चेन्नई, अहमदाबाद, राजस्थान के ऐसे 21 परिवार शामिल हुए जिन्होंने शिक्षा की वर्तमान प्रणाली को बच्चों के लिए बोझ बताया। उन्होंने अभिभावकों को बताया- बच्चों को सक्सेस के पीछे मत भगाओ। उन्हें काबिल बनाओ। कामयाबी मिलेगी। उन्होंने कहा आज की शिक्षा प्रणाली से बच्चे आत्महत्या तक कर रहे हैं। कहा कि वे शिक्षा विरोधी नहीं हैं, पर बच्चों के सामने भविष्य के लिए कई रास्ते खुले हैं।
बच्ची खेती, फर्नीचर डिजायनिंग में माहिर
उदयपुर के मनीष जैन ने 1994 में हार्वर्ड विवि से एमएड की डिग्री ली। पेरिस में यूनेस्को और अफ्रीका में यूनिसेफ में नौकरी की। यहां कई शिक्षा मंत्रियों को एजुकेशन सिस्टम पर ट्रेनिंग दिया। फिर विश्व बैंक में भी सेवाएं दी। काम में मन नहीं लगता तो इस्तीफा देकर वापस देश लौट आए। आमेट निवासी मनीष ने अपनी बेटी को कभी स्कूल नहीं भेजा। वे विमुक्त शिक्षा पर परिवारों और उनके बच्चों को प्रशिक्षित करते हैं। बच्चों को खेती करना, लकड़ी से कुर्सी-टेबल बनाना, चिकनी मिट्टी के पोट्रेट और वेस्ट चीजों से उपयोगी सामान बनाना सिखाते हैं। इनकी बेटी आज एक फर्नीचर डिजायनर होने के साथ मल्टी टैलेंटेड भी है।