कोरोना काल में तकनीक पर सवार हुई शिक्षा

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बीकानेर। चाइनीज कोरोना महामारी के बीच चिकित्‍सकों और पुलिस ने जहां कोविड वॉरियर के रूप में अपनी भूमिका स्‍पष्‍ट की है, वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी एक क्रांति हौले से घट रही है। भले ही आज हम इसे एक समस्‍या समाधान के तौर पर देख रहे हों, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों और विद्यार्थियों में एक पुख्‍ता कायांतरण स्‍पष्‍ट दिखाई दे रहा है। शिक्षकों का बड़ा समूह कोरोना वॉरियर का हिस्‍सा नहीं है, लेकिन कोरोना काल में पूरे एज्‍युकेशन सिस्‍टम को जिस प्रकार शिक्षकों ने संभाल लिया है, वह प्रशंसनीय है।

केन्‍द्रीय विद्यालय की परीक्षाएं समाप्‍त भी नहीं हुई थी कि कोरोना महामारी के कारण विद्यालयों को बंद कर दिया गया था। परीक्षाएं स्‍थगित हो गई और आगामी सत्र के बारे में कोई पुख्‍ता निर्णय नहीं किया गया था। 22 मार्च को राष्‍ट्रव्‍यापी बंद के ठीक बाद आए लॉकडाउन ने स्‍कूलों को सूना कर दिया, शिक्षकों और विद्यार्थियों को अपने अपने घरों में बंद कर दिया। इस बीच एक अप्रेल को नया सत्र शुरू हो गया।

मेरा पुत्र केन्‍द्रीय विद्यालय द्वितीय बीकानेर में पढ़ता है। शिक्षण पद्धति में हुए इस बदलाव का मैं प्रत्‍यक्षदर्शी रहा। शिक्षक और विद्यार्थी जब स्‍कूल नहीं पहुंच पाए तो ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हुई। पहले व्‍हाट्सअप ग्रुप बने। कुछ दिन में विद्यार्थियों की बंदरों वाली उछलकूद व्‍हाट्सअप कक्षाओं में पूरी रवानी पर आ गई। इस समस्‍या का समाधान इस प्रकार किया गया कि ग्रुप में पोस्‍ट Admin Onlyकर दिया गया। ग्रुप बनाया कक्षा दस की कक्षाध्‍यापिका ने और एडमिन के रूप में शामिल हुए सभी विषयों के अध्‍यापक और स्‍वयं विद्यालय के प्रिंसीपल।

अब दूसरा विस्‍तार हुआ गूगल क्‍लासरूम और गूगल मीट के रूप में। कक्षा का लिंक सभी बच्‍चों को मिल गया। सभी प्रकार के डाक्‍यूमेंट, लैसंस और प्रयोग गूगल क्‍लासरूम में आने लगे। इस बीच ग्रीष्‍मकालीन अवकाश आ गए। शिक्षकों ने बाकायदा सभी विद्यार्थियों को ग्रीष्‍मकालीन गृहकार्य सौंपा और बच्‍चे छुट्टियां मनाने लगे। ऐसी उम्‍मीद थी कि जुलाई में स्‍कूल खुलने के समय तक कोरोना का कहर बहुत हद तक समाप्‍त हो जाएगा और स्‍कूल नियमित खुल जाएंगे, तब गृहकार्य भी जांच लिया जाएगा और शिक्षण कार्य पटरी पर आ जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

ग्रीष्‍मकालीन अवकाश समाप्‍त हुए और वहीं व्‍हाट्सअप, गूगल क्‍लासरूम और गूगल मीट पर ही कक्षाएं दोबारा शुरू हुईं। गर्मी की छुट्टियों से पहले की तुलना में इस बार शिक्षक, स्‍कूल प्रशासन और बच्‍चे तीनों अधिक तैयार थे। पूर्व में जहां कभी कभार गूगल मीट पर कक्षाएं हो रही थीं, वहीं जुलाई की शुरूआत में कक्षाएं नियमित होने लगी।

जुलाई समाप्‍त होने तक यह स्थिति हो चुकी है कि सुबह नौ बजे पहली कक्षा का लिंक व्‍हाट्सअप ग्रुप में आता है और आखिरी लिंक दोपहर एक बजे तक आता है। हर शिक्षक पूरी तैयारी और पूरे धैर्य के साथ हर विद्यार्थी को ऑनलाइन की समझाने का प्रयास कर रहा है, देखने में ऐसा लग रहा है कि ये प्रयास सफल भी हो रहे हैं। स्‍कूल का समय समाप्‍त होने के बाद विद्यार्थियों के पास होमवर्क भी होता है करने के लिए, जिसे वे ऑफलाइन साथ ही साथ निपटाते जा रहे हैं। किस छात्र ने कितना काम किया है, इसका भी अपडेट शिक्षक रख रहे हैं।

छात्रों से कहा जाता है कि एडोब स्‍कैनर अथवा किसी भी स्‍कैनर से होमवर्क की फोटो खींचकर पीडीएफ बनाए और उसे शिक्षक को भेज दें। यानी गृहकार्य की जांच का काम भी ऑनलाइन ही संभव हो पा रहा है। सामान्‍य स्‍कूली शिक्षा में जहां छात्र सुबह छह बजे घर से निकलता है और स्‍कूल की इन्‍हीं कक्षाओं को पढ़कर वापस लौटता है, तब तक अपराह्न के तीन बज चुके होते हैं। वही पढ़ाई और अधिक दक्षता वह घर बैठे हासिल कर रहा है।

यही नहीं, इन्‍हीं वुर्चअल कक्षाओं में शिक्षक और विद्यार्थियों के साथ एक ओर स्‍कूल प्रशासन की ओर से प्रिंसीपल जुड़े हैं तो दूसरी ओर अभिभावक भी व्‍हाट्सअप समूहों में जुड़े हैं और ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल हो सकते हैं। गूगल मीट एप्‍प पर ही पिछले दिनों शिक्षकों और अभिभावकों की मुलाकात वर्चुअल पेरेंट टीचर मीटिंग के रूप में हुई। हर विद्यार्थी के बारे में शिक्षक इतनी सटीकता से जानकारी रखते हैं कि देखकर आश्‍चर्य होता है।

कहा नहीं जा सकता कि कोरोना महामारी का दौर कितने समय तक चलेगा, लेकिन जिस प्रकार जिंदगी अपना रास्‍ता तलाश लेती है, अदम्‍य इच्‍छाशक्ति वाले शिक्षण तंत्र ने भी अपना रास्‍ता महामारी के बीच से बना लिया है, संचार क्रांति के ढेरों लाभ हुए होंगे, लेकिन ऑनलाइन शिक्षण की संभावना कोरोना के कारण ही स्‍पष्‍ट हो पाई है। बच्‍चों को भी रोजाना स्‍कूल जाने के बजाय यह शिक्षण पद्धति रास आ रही है।

हो सकता है भविष्‍य में दो प्रकार की शिक्षण पद्धतियां प्रकाश में आएं, एक वह जो नियमित रूप से स्‍कूल जाकर पढ़ने वाले हों और दूसरे वे जो कभी कभार स्‍कूल जाएं और नियमित रूप से ऑनलाइन शिक्षा का भाग बनें। अगर ऐसा होता है कि तो आपदा को अवसर में बदल देने का यह सुनहरा मोड़ साबित होगा।

सिद्धार्थ जगन्‍नाथ जोशी

एक अभिभावक के रूप में