बांसवाड़ा। प्रशासन की ओर से बच्चों को न्यूनतम अधिगम स्तर तक लाने के लिए प्राथमिक-उच्च प्राथमिक स्कूलों (Institutions) में चलाए जा रहे अलख अभियान में उपलब्धि भले ही नहीं हो, पर दबाव में फर्जीवाड़ा कर खानापूर्ति हो रही है। विभागीय और प्रशासनिक अधिकारियों के मुआयने के दौरान इसकी पोल खुली है। ऐसे हालात में अब नए सिरे से आंकलन करवाना पड़ रहा है। दरअसल, अलख को लेकर हर महीने स्कूलों से न्यूनतम अधिगम स्तर प्राप्त बच्चों की रिपोर्ट मांगी जा रही है। इसमें तकरीबन सभी स्कूलों की उपलब्धि 50 फीसदी से ज्यादा बताई जा रही है, लेकिन कलेक्टर, एसडीओ के अलावा खुद डीईओ द्वारा निरीक्षण के दौरान कक्षाओं में मूल्यांकन करने पर रिपोर्ट मेल नहीं खा रही। इस स्थिति को कलेक्टर ने भी गंभीरता से लिया। कलेक्टर ने इस बारे में स्पष्ट निर्देश दिए कि बच्चों की प्रोफाइल में मनमाने तरीके से सही के चिह्न नहीं लगाए जाएं और मूल्यांकन में शिक्षक को जो गलत लगता है, उसका सही-सही आंकलन हो। भलेे ही न्यूनतम अधिगम स्तर प्राप्त बच्चों का प्रतिशत दस फीसदी हो या 90 फीसदी। यदि बालक योग्य है तभी न्यूनतम अधिगम स्तर प्राप्त मानते हुए उसकी प्रोफाइल के सभी बिंदुओं को राइट का चिह्न लगाया जाए। इस पर दोनों जिला शिक्षा अधिकारियों ने पीईईटो और संस्था प्रधानों को मार्च की सूचना का वापस सही आंकलन कर भेजने के निर्देश देते हुए स्पष्ट किया है कि इसके लिए बच्चों का कोई विशेष टेस्ट नहीं लिया जाए। जांच में गड़बडी मिली तो कार्यवाही की जाएगी।