शिक्षा और शोध की गुणवत्ता में अभी हैं कई अड़चनें

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शिक्षा और शोध के हालात सुधारने की आकांक्षा से प्रेरित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने हाल ही में पीएचडी को लेकर 2009 के नियमों में कुछ बदलाव किए हैं। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है स्नातकोत्तर डिग्री की अनिवार्यता को खत्म करना। विकल्प में नई शिक्षा नीति 2020 की उन बातों को दोहराया गया है जिनमें 4 वर्षीय पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद आप सीधे पीएचडी कर सकते हैं, न एमफिल की अनिवार्यता है, न स्नातकोत्तर डिग्री की। ग्रेजुएशन के चौथे वर्ष में आपको शोध के विषय में कुछ अनिवार्यता जरूर पूरी करनी होंगी।

शिक्षा और शोध के हालात सुधारने की आकांक्षा से प्रेरित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने हाल ही में पीएचडी को लेकर 2009 के नियमों में कुछ बदलाव किए हैं। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है स्नातकोत्तर डिग्री की अनिवार्यता को खत्म करना। विकल्प में नई शिक्षा नीति 2020 की उन बातों को दोहराया गया है जिनमें 4 वर्षीय पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद आप सीधे पीएचडी कर सकते हैं, न एमफिल की अनिवार्यता है, न स्नातकोत्तर डिग्री की। ग्रेजुएशन के चौथे वर्ष में आपको शोध के विषय में कुछ अनिवार्यता जरूर पूरी करनी होंगी।
दुनिया के ज्यादातर देशों में स्नातकोत्तर डिग्री की बजाय आपका विषय, आप की परिकल्पना, आपका काम ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। यहां तक कि पीएचडी की औपचारिक डिग्री भी नहीं। हमारे देश में ही कई जाने-माने नाम हैं जिन्होंने ग्रेजुएशन के बाद पीएचडी की। समीर कुमार जो डीआरडीओ के चेयरमैन हैं, ने आइआइटी खडग़पुर से बीटेक करने के बाद सीधे ओहिओ यूनिवर्सिटी से तीन वर्ष में पीएचडी की। शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से पुरस्कृत अमित कुमार दिल्ली आइआइटी में प्रोफेसर हैं और शुभम सहाय कानपुर आइआइटी में। ये सभी बिना स्नातकोत्तर डिग्री के पीएचडी हैं। इस बदलाव की जरूरत इसलिए भी थी कि लगभग 1000 विश्वविद्यालयों के बावजूद चीन, यूरोप व अमरीका के मुकाबले हमारे शोध पत्रों की गुणवत्ता और संख्या सबसे कम है।

साभार: www.patrika.com