रामसौर/ डूंगरपुर। गलियाकोट उपखण्ड क्षेत्र की दर्जनों प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के हाल बूरे हैं। राउप्रावि तंबोलिया वर्ष 1976 में खुला था। अब यह भवन जवाब दे चुका है। सरकार ने वर्ष 2005 में स्कूल पर उप्रावि में क्रमोन्नति का तमगा लगा दिया। पर, विद्यालय भवन को सुधारने में जरा भी पहल ही नहीं की। यह कभी भी गिर सकता है। बारिश के दिनों में समस्या और अधिक बढ़ जाती है। समय रहते विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो यह स्कूल भवन कभी भी कोई बड़ी जनहानि का सबब बनेगा। यहां पूर्व में छत्त की दो पट्टियां भी गिर गई थी।
तरणताल बनता है स्कूल
रामसौर। राजकीय प्राथमिक विद्यालय गड़ा छोटा का भवन भी काफी पुराना व जीर्ण शीर्ण है। बारिश के दिनों में यह पुरा भवन तरणताल बन जाता है। ऐसे में शिक्षक के पास बच्चों की छुट्टी के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता है। कमोबेश यहीं हालात राप्रावि बिझौला के भी हैं। यहां की छतें भी टपकती हैं। दीवारों एवं छत की पट्टियों में दरारें पड़ गई हैं।
पूरा भवन हो गया है खण्डहर
गलियाकोट ब्लॉक का राउमावि गड़ा मेड़तिया में भी दो वर्ष से पूरा भवन खण्डहर हो गया है। यह भवन 1953-1954 में बना है। इसमें छह कक्षा कक्ष पूर्णतया जर्जर हैं। शाला दर्पण पोर्टल पर भी इन कक्षों को अनुपयोगी बता दिया है। पर, फिर भी इसके पहली से 12वीं तक की कक्षाओं का संचालन इन्हीं कक्षों में हो रहा है। कमोबेश यहीं हालात राउमावि गरियाता में भी है। यहां स्कूल प्रशासन ने अपने स्तर पर पट्टियों में लोहे के एंगल फंसा कर पट्टियों का सहारा दे रखा है।
यहां भी हैं पट्टियां टूटी
सरोदा। राउप्रावि बुचिया बड़ा के हाल और भी बूरे हैं। बरामदे में दो कक्षों के सामने छत की चार पट्टियां टूटी हुई हैं। गत दो वर्ष से इन खस्ताहाल बरामदे में मासूम जान जोखिम में डाल कर अध्ययन कर रहे हैं। प्रधानाध्यापक चेतनलाल डिण्डोर ने बताया कि ग्राम पंचायत एवं विभाग को कई बार अवगत करा दिया। पर, समस्या का समाधान ही नहीं हुआ। छात्र भानुप्रताप सिंह से बात करने पर बताया कि हर पल इस छत गिरने का डर बना रहता है।
मौत के साये में जगमगा रहा शिक्षा का दीप
डूंगरपुर। कुछ दिनों पूर्व ही प्रदेश के करौली जिले में एक राजकीय माध्यमिक विद्यालय का दरवाजा गिरने से छात्रा की मौत हो गई। ऐेसे ही दर्दनाक हादसे यदि जिले में भी घटित हो जाएं, तो कोई आश्चर्य नहीं। हाल यह है कि हर वर्ष करोड़ों रुपए फूंकने के बाद भी जिले के देहात क्षेत्रों में संचालित शिक्षा के मंदिरों की स्थिति बदत्तर ही बनी हुई है। कई स्कूलों की छतों और दीवारों में दरारें पड़ गई हैं, तो कई स्कूलों में दरवाजे और रोशनदान ने जवाब दे दिया हैं। जिले के विद्यालयों की टोह लेेने पर यह तस्वीर उभर कर सामने आई।
खस्ताहाल भवनों में पढऩे की मजबूरी
साबला। उपखण्ड क्षेत्र में तहसील कार्यालय से महज 30 मीटर दूरी पर राजकीय प्राथमिक विद्यालय धाणी सापलवा खस्ताहाल है। जबकि, समय-समय पर इस विद्यालय का विकास अधिकारी, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, तहसीलदार सहित शिक्षा महकमे के सभी अधिकारियों ने अवलोकन किया है। पर, विद्यालय के हालात नहीं सुधरे हैं। विद्यालय के बरामदे की सभी पट्टियां टूट गई हैं। यह पट्टियां भी जंग लगे हुए सरियों पर टिकी हुई हैं। ऐसे में हर पल खतरे का अंदेशा बना हुआ है। संस्थाप्रधान कल्पेश कुमार ने कई बार अधिकारियों को पीड़ा बताई। पर, समस्या सुनने वाला ही नहीं है।