तब 9 हजार स्कूलों की फीस तय की, अब उनके हित का कानून

जयपुर। राज्य में निजी स्कूलों की मनमानी फीस पर एक तरफ जहां कांग्रेस और भाजपा आमने सामने हैं, वहीं राज्य स्तरीय फीस कमेटी के पूर्व चेयरमैन जस्टिस शिवकुमार शर्मा ने दोनों ही सरकारों की मंशा पर सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा कि राजस्थान में न तो तमिलनाडु पैटर्न ठीक से लागू हुआ और न महाराष्ट्र पैटर्न। हमने पहले वाले कानून के आधार पर जब 9 हजार (thousand) स्कूलों फीस तय कर दी थी। आवेदन फार्म का शुल्क भी 200 रुपए तय करने से लेकर सजा का प्रावधान भी कर दिया था। सरकार को बताना चाहिए कि इसके बाद आखिर ऐसा क्या हो गया, जो तीन साल के भीतर ही कानून बदल दिया गया। उनका कहना है कि तमिलनाडु पैटर्न पर लागू किया गया, वह फीस एक्ट सही मायने में अभिभावकों की पैरवी करने वाला था। इसे भी सही तरीके से लागू नहीं किया गया। सरकार ने अब नए कानून में वो प्रावधान ही गायब कर दिए हैं, जो निजी स्कूल संचालकों के हित में नहीं थे। केवल वही प्रावधान रखे, जो उनके फायदे के थे। निजी स्कूलों की फीस बढ़ोतरी के मुद्दे पर गुरुवार को जस्टिस शर्मा ने कहा कि तमिलनाडु के फीस एक्ट को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना था। सरकार यह बताए कि उन 9 हजार स्कूलों का क्या हुआ, जिनकी फीस तय की गई थी।

तमिलनाडु पैटर्न पर बना कानून

पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने तमिलनाडु के फीस एक्ट के आधार पर वर्ष 2013 में फीस नियामक एक्ट बनाया। इस कानून में राज्यस्तरीय फीस कमेटी को सभी निजी स्कूलों की फीस तय करने का अधिकार दिया गया था। इस कमेटी का अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा को बनाया गया। उन्होंने प्रदेश में 9 हजार स्कूलों की फीस भी तय कर दी थी। आवेदन फॉर्म का शुल्क भी 200 रुपए तक तय कर दिया था। कानून के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान था। इसमें 1 से 3 साल तक की सजा और 50 हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान रखा गया था।

तब निजी स्कूलों का दबाव : सरकार ने स्कूलों को ही सौंप दिया फीस का अधिकार

कांग्रेस शासन में बने कानून के आधार पर राज्य स्तरीय फीस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा ने 9 हजार स्कूलों की फीस तय कर दी थी। इससे निजी स्कूल संचालक बौखला गए और उन्होंने इसके विरोध में जयपुर में विरोध प्रदर्शन किया। कुछ निजी स्कूल संचालक टंकी पर भी चढ़ गए थे। इसके बाद उन्होंने महाराष्ट्र पैटर्न पर कानून बनाने की मांग उठाई। ताकि फीस तय करने का अधिकार निजी स्कूल संचालकों के पास ही रहे। क्योंकि इस कानून में स्कूल स्तरीय फीस कमेटी का प्रावधान था। जिसमें 5 अभिभावक भी होते हैं। निजी स्कूल संचालक इतने पावरफुल होते हैं कि अभिभावक खुलकर उनका विरोध कर पाते। इसलिए सरकार ने इनकी मांग के आगे झुकते हुआ पुराना कानून बदलकर नया कानून लागू कर दिया। जिसका अभिभावकों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है।

न सरकार को, न हमें… सबसे पवित्र पेशे को धोखा दे रहे हैं स्कूल

महाराष्ट्र पैटर्न अपनाया, वो भी आधा-अधूरा

भाजपा शासन में लागू हुआ फीस एक्ट वर्ष 2016 में बने इस एक्ट में फीस तय करने की जिम्मेदारी स्कूल स्तरीय फीस कमेटियों को दे दी गई। इसके 10 सदस्यों में से 5 अभिभावक होते हैं। साथ ही महाराष्ट्र पैटर्न पर लागू हुए इस कानून में बदलाव भी कर दिया गया। महाराष्ट्र में इस कानून के तहत एक राज्यस्तरीय फीस कमेटी के गठन का प्रावधान भी है। जिसमें पूर्व न्यायाधीश अध्यक्ष होता है। यहां इसमें बदलाव करके प्रारंभिक शिक्षा सचिव को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर कमेटी का स्तर हल्का कर दिया गया। साथ ही नए कानून में से सजा का प्रावधान हटा दिया गया और केवल जुर्माने का प्रावधान ही रखा गया। इससे निजी स्कूल संचालक बेखौफ होकर कानून का धज्जियां उड़ा रहे हैं।

महाराष्ट्र पैटर्न अपनाया, वो भी आधा-अधूरा

भाजपा शासन में लागू हुआ फीस एक्ट वर्ष 2016 में बने इस एक्ट में फीस तय करने की जिम्मेदारी स्कूल स्तरीय फीस कमेटियों को दे दी गई। इसके 10 सदस्यों में से 5 अभिभावक होते हैं। साथ ही महाराष्ट्र पैटर्न पर लागू हुए इस कानून में बदलाव भी कर दिया गया। महाराष्ट्र में इस कानून के तहत एक राज्यस्तरीय फीस कमेटी के गठन का प्रावधान भी है। जिसमें पूर्व न्यायाधीश अध्यक्ष होता है। यहां इसमें बदलाव करके प्रारंभिक शिक्षा सचिव को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाकर कमेटी का स्तर हल्का कर दिया गया। साथ ही नए कानून में से सजा का प्रावधान हटा दिया गया और केवल जुर्माने का प्रावधान ही रखा गया। इससे निजी स्कूल संचालक बेखौफ होकर कानून का धज्जियां उड़ा रहे हैं।

शिक्षक के स्थानांतरण की परिवेदना का निस्तारण करने के दिए निर्देश

शाहपुरा। हाई कोर्ट ने तृतीय श्रेणी शिक्षक की पत्नी की बीमारी के आधार पर स्थानांतरण करने की याचिका का निस्तारण कर प्रारंभिक शिक्षा विभाग के शासन सचिव, निदेशक एवं सीकर के जिला शिक्षाधिकारी को शिक्षक परिवेदना को स्वीकार करने के निर्देश दिए। शिक्षक सोनाराम के एडवोकेट संदीप कलवानिया ने बताया कि प्रार्थी तृतीय श्रेणी शिक्षक के पद पर दांतारामगढ़ पंचायत समिति में कार्यरत है। प्रार्थी की पत्नी कैंसर रोग से पीड़ित है। निदेशक प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने पिछले दिनों सर्कुलर जारी कर बीमारी के आधार पर शिक्षकों के स्थानांतरण इच्छित स्थान पर किए है। प्रार्थी ने भी पत्नी की बीमारी का हवाला देते हुए पीपराली ब्लॉक में स्थानांतरण करने के किए परिवेदना दी थी।