दो वर्ष पहले वन विभाग ने मांगे थे शिक्षा विभाग से प्रस्ताव

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प्रतापगढ़। भारत सरकार की ओर से दो वर्ष पूर्व सरकारी स्कूलों में बच्चों में प्रकृति से मैत्री बढ़ाने और उनमें पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए विद्यालयों में स्कूल नर्सरी योजना की कवायद की थी। लेकिन यह योजना फाइलों में दफन हो गई है। नो तो इस योजना के लिए आगे से कोई निर्देश मिले और ना ही शिक्षा विभाग (Department) की ओर से इसके लिए वन विभाग को किसी भी विद्यालय का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया।

यह थी योजना

विद्यालयों में अध्ययनरत बच्चों में पढ़ाकू प्रवृत्ति अधिक होने और प्रकृति से दूर होने की स्थिति को देखते हुए दो वर्ष पहले भारत सरकार ने स्कूल नर्सरी योजना शुरू की थी। जिसमें प्रकृति से मैत्री बढ़ाने और उनमें पर्यावरण के प्रति जागरुकता बढ़ाने के लिए विद्यालयों में लगाई जाने वाली नर्सरियों में विभिन्न औषधीय व हर्बल, सजावटी, झाडिय़ों, पेड़ों की पौध तैयार किए जाने थे। इसे लेकर उप वन संरक्षक की ओर से जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) को पत्र लिखकर स्कूल नर्सरी योजना के बारे में प्रस्ताव भिजवाने के लिए कहा गया था। लेकिन शिक्षा विभाग ने एक भी स्कूल के लिए प्रस्ताव नहीं बनाए।

पायलट बेसिस पर थी पांच वर्षकी योजना

योजना के तहत चयनित स्कूल में पांच साल की अवधि के लिए पायलट बेसिस पर शुरू होने वाली थी। योजना में कक्षा 6 से 9 के सभी विद्यार्थी शामिल किए जाने थे। स्कूल नर्सरी में प्रत्येक वर्ष एक हजार पौधों की नर्सरी के लिए एक सौ वर्ग मीटर स्थान होना जरूरी है। पौधरोपण सेशन की शुरुआत में प्रत्येक विद्यार्थी द्वारा कम से कम एक पौधा लगाने एवं उसके तैयार होने तक उसकी देखरेख करनी थी।

आर्थिक सहायता का था प्रावधान

विभाग की ओर से चुने गए विद्यालयों को प्रथम वर्ष नर्सरी के विकास के लिए 25 हजार रुपए की राशि देने थे।

संतोषजनक स्थिति

विभाग की ओर से चुने गए विद्यालयों को प्रथम वर्ष नर्सरी के विकास के लिए 25 हजार रुपए की राशि देने थे। संतोषजनक स्थिति होने पर आगामी दो वर्षों में स्कूल को मैंटेनेंस ग्रांट के रूप में 10-10 हजार रुपए का प्रावधान था। चयनित स्कूलों को इसका रिकॉर्ड संधारण करना था।

नहीं मिला एक भी प्रस्ताव

स्कूल नर्सरी योजना के तहत हमनें शिक्षा विभाग (मा.) को पत्र लिखकर प्रस्ताव मांगे थे। लेकिन इस योजना में एक भी प्रस्ताव नहीं आए। इससे योजना मूर्त रूप शुरू नहीं हो सकी।

-एस.आर. जाट, उपवन संरक्षक, प्रतापगढ़