जब अभिभावक होंगे जागरुक, तभी निजी स्कूलों में फीस की मनमानी पर लगेगा अंकुश

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शिक्षा विभाग नहीं गंभीर, जिला प्रशासन भी नहीं दे रहा ध्यान

राजसमंद। नियमों के लचीलेपन का फायदा उठाकर निजी स्कूल लगातार मनमानी करते हैं। कमीशन के चक्कर में यह किताबों से लेकर डे्रस तक जबरन अभिभावकों के माथे मढ़ते हैं और बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित अभिभावक उनकी गिरफ्त में फंसता जाता है। इधर अधिकारी भी बिना शिकायत कार्रवाई से कतराते हैं। उनका कहना है कि निजी स्कूलों की मनमानी पर तभी अंकुश लग सकता है जब अभिभावक जागरूक हों, और खुलकर विरोध करें। तभी हम स्कूलों पर सख्त कार्रवाई कर सकते हैं।

किताबों में भी मनमानी

निजी स्कूल सभी नियम कायदों को दर किनार कर निजी प्रकाशनों की किताबें चलाते हैं। जबकि नियम एनसीआरटी की किताबें चलाने के हैं। लेकिन अभिभावकों द्वारा इसका विरोध नहीं करने से निजी विद्यालय मनमानी करते हैं। दरअसल एनसीईआरटी की किताबों और निजी प्रकाशकों की किताबों में करीब ७० से ८० प्रतिशत का अंतर हैं। ऐसे में स्कूलों को निजी प्रकाशकों द्वारा मोटी रकम दी जाती है। सत्र शुरू होने से पूर्व ही प्रकाशक स्कूलों से सम्पर्क करते हैं। इस दौरान स्कूल में बच्चों की संख्या के अनुसार कमीशन तय हो जाता है। फिर स्कूल के बताए पुस्तक भंडार पर प्रकाशक अपनी किताबें भेज देता है। इसमें कईबार पुस्तक भंडार का कमीशन भी स्कूल ही तय करता है। जबकि कईबार प्रकाशक उसे अलग से कमीशन देता है। कई स्कूल तो स्कूल परिसर में ही किताबों की दुकान खोलकर बैठे हैं।

ड्रैस में भी मनमानी

इसीतरह स्कूली ड्रेस में भी निजी स्कूल पूरी तरह से मनमानी करते हैं। बाजार में जो डे्रस पांच से सात सौ रुपए में मिल जाती है। वही डे्रस उनकी दुकान से या स्कूल से खरीदने पर २ से ४ हजार तक मिलती है। लेकिन इसका विरोध करने की बजाए अभिभावक उनकी सभी शर्तें मानते चले जाते हैं।

शिकायत हो तो कार्रवाई करें…

अगर अभिभावक इसकी लिखित शिकायत करें तो ऐसे स्कूलों के खिलाफ निश्चित तौर पर कार्रवाई होगी। लेकिन कोई अभिभावक स्कूलों के खिलाफ शिकायत नहीं करता है। कई बार हम कार्रवाई के लिए जाते हैं तो वह पलट जाता है। ऐसे में हम ठोस कार्रवाई नहीं कर पाते।

-युगल बिहारी दाधीच, जिलाशिक्षाधिकारी (प्रारंभिक), राजसमंद