राजसमंद। निजी स्कूलों के मनमाने रवैये के पीछे सीधे तौर पर जिम्मेदारों (responsible) की मिली भगत होती है। क्योंकि यह कोई चुपचाप खेले जाने वाला खेल नहीं है। क्या? अधिकारियों को नियम-कानून नहीं पता, या फिर उन्हें निजी स्कूलों द्वारा प्रतिवर्ष बढ़ाई जा रही अनियमित फीस, कॉपी-किताबों से लेकर डे्रस, मोजे तक में कमीशन दिखाई नहीं देता है। सडक़ों पर नियम पालना को ताक पर रखकर दौड़ती, इनकी बसें, किससे छुपी हैं। नहीं साहब! यह सब इनकी जानकारी में होता है। यह बात रविवार को शहर के प्रबुद्धजनों ने कही। लोगों का कहना था कि अब अभिभावकों को भी जागरूक होना होगा। क्योंकि अब स्कूल शिक्षा के मंदिर नहीं रहे, व्यापारियों की दुकान बन गए हैं, ऐसे में अभिभावकों को भी जागरूक ग्राहक बनकर ‘शिक्षा की दुकानों’ से ‘ज्ञान’ की खरीदारी करनी होगी।
शिक्षा को बनाया व्यापार
वर्तमान शिक्षा पूरी तरह से व्यापार बन गई है। स्कूल संचालकों का जोर शिक्षा पर नहीं होकर सिर्फ जेबे भरने पर रहता है। इस व्यापार को बढ़ावा देने में बहुत बड़ा हाथ जिम्मेदार अधिकारियों का है, क्योंकि अगर उनकी मिली भगत नहीं हो तो एक दिन भी इनका खेल नहीं चल सकता। अगर निजी स्कूलों के शोषण से मुक्ति पानी है, तो अभिभावकों को भी उनके सामने आवाज उठानी होगी। हम शोषण सहकर बच्चे का भविष्य नहीं संवार सकते।