आईआईटी कोचिंग : लाखों ठगे गए, हजारों रगड़े गए, गिने चुनों को लाभ

IIT Coaching आईआईटी कोचिंग

लाखों ठगे गए, हजारों रगड़े गए, गिने चुनों को लाभ

आईआईटी कोचिंग : गंदा है पर धंधा है ये

बीकानेर। शिक्षा व्‍यवस्‍था में आज कोचिंग संस्‍थान एक आवश्‍यक बुराई के रूप में प्रवेश कर चुका है। अगर आपके बच्‍चे ने विज्ञान अथवा गणित विषय का चुनाव किया है, तो उसी दिन तय हो जाता है कि अगले कई साल लाखों रुपए कोचिंग संस्‍थानों की भेंट चढ़ने वाले हैं।

इन कोचिंग संस्‍थानों की हकीकत भी यही है कि एक हजार विद्यार्थियों में से दस आईआईटी जैसी परीक्षा में सफल होते हैं, शेष 990 भाग्‍य भरोसे पर छोड़ दिए जाते हैं। अगले साल इन विद्यार्थियों को फिर से तैयारी करनी है तो फिर कोचिंग करनी होगी, या फिर कोचिंग के‍ लिए संस्‍थान के पास फिर से कतार में नए छात्र तैयार होंगे। ये नए छात्र उन दस सफल छात्रों के अखबारी विज्ञापनों के भरोसे आते हैं, जिन्‍हें परीक्षा परिणाम के दिन से ही पूरे पृष्‍ठ के रूप में छापना शुरू कर दिया जाता है।

आईआईटी प्रतियोगी परीक्षा पास करने के बारे में कोचिंग संस्‍थान की जरूरत भी एक भुलावा है। हाल ही में आईआईटी गुवाहाटी ने इस साल चुने गए सारे छात्रों के बारे में जो अध्ययन किया, वह इस विषय पर काफी रोशनी डालता है।

अध्ययन के मुताबिक, आईआईटी में चुने गए 10,576 छात्रों में से 5,539 छात्र, यानी 52.4 प्रतिशत ऐसे थे, जिन्होंने कोचिंग नहीं ली। 4,711 छात्र, यानी 44.5 फीसदी कोचिंग संस्थानों से पढ़कर कामयाब हुए। बाकी लगभग दो प्रतिशत छात्रों ने या तो निजी ट्यूशन लिए या फिर पत्राचार से प्रशिक्षण हासिल किया।

यानी कामयाब होने वाले छात्रों में से बहुमत ऐसे छात्रों का है, जिन्होंने अपने बूते ही सिर्फ स्कूल की पढ़ाई की मदद से कामयाबी हासिल की। इसे इस बात का प्रमाण माना जा सकता है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में कामयाबी के लिए कोचिंग अनिवार्य नहीं है। इसे ऐसे भी देखा जा सकता है कि आधे से कुछ ही कम छात्रों ने कोचिंग का सहारा लिया।

कोचिंग औपचारिक शिक्षा-व्यवस्था का हिस्सा नहीं है, कोचिंग संस्थानों की इस कदर प्रभावशाली उपस्थिति दरअसल शिक्षा-व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाती है। ज्यादातर शिक्षाविद कोचिंग कारोबार को अच्छी नजर से नहीं देखते। ज्यादातर छात्र और अभिभावक भी इसे एक अनिवार्य बुराई मानकर ही स्वीकार करते हैं। आईआईटी के प्रबंधक और शिक्षक भी कोचिंग के आलोचक ही हैं। उनका कहना है कि प्रवेश परीक्षा किसी छात्र के उत्तर रट लेने की क्षमता की कसौटी नहीं होनी चाहिए।

आईआईटी में वे ऐसे छात्र चाहते हैं, जिनकी रचनात्मकता, कल्पनाशीलता और वैज्ञानिक, तकनीकी रुझान ऐसा हो, जिससे वे नया सोच सकें और मौलिक काम कर सकें। उनका कहना है कि कोचिंग संस्थानों ने इन सब बातों को पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण का हिस्सा बना लिया है, जिससे आईआईटी प्रवेश परीक्षा का उद्देश्य ही विफल हो जाता है।इससे जूझने के लिए प्रवेश परीक्षाओं में ऐसे बदलाव किए जाते हैं, ताकि वे कोचिंग के प्रशिक्षण से अलग छात्रों की मौलिकता को परख सकें, लेकिन कोचिंग संस्थान वाले तुरंत उसे भी अपने प्रशिक्षण का हिस्सा बना लेते हैं।

आखिर में नतीजा यह होता है कि साल दो साल तक कोचिंग संस्‍थानों के धक्‍के खाने के बाद अधिकांश छात्र या तो निम्‍नतर इंजीनियरिंग महाविद्यालयों में प्रवेश ले लेते हैं, या फिर एकेडमिक शिक्षा की ओर मुड़ जाते हैं, कोचिंग का धंधा बदस्‍तूर जारी रहता है।

सिद्धार्थ जोशी, वरिष्‍ठ संवाददाता
राजस्‍थान शिक्षा न्‍यूज पोर्टल